फिर मुझे तू मिल गया
ना मेरे पास गाड़ी, बंगला आलीशान
खाली जेब, पैसों का न नामोनिशान।
ना कोई हंसता मेरी बहकी बातों पे
ना कोई संग मेरी अकेली रातों में।
दिल में सोच के अपनाली थी सच्चाई हमने,
कि ना मिलेगा जो लुटाए हमपे प्यार।
दूजो को छोड़ो, खुद ना दिखती थी अच्छाई हममें,
तो मुमकिन हो कैसे दिलों का कारोबार।
पर फिर मुझे तू मिल गया, पर फिर मुझे तू मिल गया
मुझे थी जिसकी जुस्तजू मिल गया, चाहा था जैसा वहीं मिल गया।
ज्यादा सयाना ना भोलेपन का हैं रोग, ना सूरत ऐसी कि पलट के देखें लोग।
मिल जाऊं भीड़ में आसानी से, बस यूंही कट रहीं थी जिंदगानी ये।।
मिलना नामुमकिन था इस मतलबी जमाने में वो,
जो करदे कमी खामियों को दरकिनार।
नाता पुराना सा जिस अजनबी अनजाने से हो,
जो मेरी जिंदगी इश्क से दे सवार।।
पर फिर मुझे तू मिल गया, पर फिर मुझे तू मिल गया
मुझे थी जिसकी जुस्तजू मिल गया, चाहा था जैसा वहीं मिल गया।
जल्दी मिलाएगा रब उससे रास्ते, जिसे बनाया हो बस तेरे वास्ते।
जो दे तुम्हारी बेकरारी को करार, बस करना होगा इस घड़ी का इंतज़ार।
यकीं इन सब बातो से उठ चुका था इस कदर कि
अनोखी लगती थी मोहब्बत की सौगात।
रेखा हाथों में ही नहीं थी किसी हमसफर की,
तो फिर कैसे हो जाती मुलाकात।
पर फिर मुझे तू मिल गया, पर फिर मुझे तू मिल गया
मुझे थी जिसकी जुस्तजू मिल गया, चाहा था जैसा वहीं मिल गया।
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